गाँधी की समन्वय चेतना | Gandhi's coordination consciousness

 गाँधी की समन्वय चेतना 

समन्वय चेतना का अर्थ है -- सबको साथ लेकर चलना। 

जो व्यक्ति समाज में, राष्ट में, समन्वय बनाकर रखता है, उसे सभी लोग प्यार करते हैं, उसको मानते हैं। 
जो व्यक्ति समन्वय बनाकर चलता है, वह अपने ही लोगों के द्वारा मारा भी जाता है। 

गाँधी ने साम्प्रदायिकता को किनारे किया और हिन्दू, मुस्लमान, सिख सभी को एक साथ लेकर आगे बढ़ने की कोशिस की। पूरा देश उनसे प्रेम करने लगा, उनकी आज्ञा मैंने लगा और गाँधी के एक इशारे पर लोग उनके साथ आंदोलन के लिए खड़े हो जाते थे। लेकिन जहाँ भी ऐसा सामञ्जस्य होता है, वहाँ किसी न किसी समुदाय को ऐसा  लगता है कि उनके अधिकारों का लाभ दूसरे को मिल रहा है और वे इस बराबरी को नापसंद करने लगते हैं तथा जो सभी को साथ लेकर चल  रहा है, उसी को ख़त्म कर देना चाहते हैं। 
नाथूराम गोडसे ने गाँधी जी की समन्वय चेतना के कारन ही उनकी हत्या कर दी। गोडसे को लगता था कि गाँधी हिन्दुओं के लिए खतरा है और इस खतरे को ख़त्म करने का एक ही तरीका है--- गाँधी की हत्या। 

वहीँ दूसरी ओर  आंबेडकर जी को देखें तो उन्होंने किसी विशेष वर्ग का साथ दिया। वे जिस अछूत जाती से सम्बन्ध रखते थे, उनके हक़ के लिए आवाज़ उठाई। आज आम्बेडकर जी को सम्पूर्ण हरिजन  सम्मान करता है। 

यही है समन्वय चेतना,
सबके द्वारा प्रेम किया जानेवाला,
अपनों के द्वारा ही आघात  पाने वाला,
वह जो है सबको साथ चलने वाला
 .... एम. के. गाँधी  
image of mahatma gandhi


आज़ादी के बाद भारत में जो विभाजन रेखा खींची गई थी वह उभरने लगी, इसमें लाखों सिखों और मुसलमानो के खून थे जो विभाजन रेखा को और गहराई दे रहे थे। आदमी एक-दूसरे को भेड़ बकरी से अधिक कुछ नहीं समझता। कत्लेआम हो रहा था। कलकत्ता, दिल्ली और पंजाब, इन राज्यों में नफरत की आग सबसे ज्यादा सबसे ज्यादा फैली हुई थी और सबसे अधिक प्रचंड थी। गाँधी जी कलकत्ता का आग शांत कर अमन कायम करने में सफल रहे।  लेकिन पंजाब बॉर्डर बेकाबू हो रहा था, भारत और पाकिस्तान के  बिच आने जाने वाली पेशावर एक्सप्रेस में आदमी-औरत-बच्चे नहीं मिलते, मिलते थे खून से सने हुए हाथ-पैर-उँगलियाँ। कौन सा अंग किस शरीर का है- पता लगाना मुश्किल हो जाता था। महिलाओं का वक्ष काट दिया जाता था और मर्दों का लिंग, धर्म की आग इतनी प्रचंड हो चुकी थी। 
पंजाब को जलने से बचाने के लिए गाँधी जी कलकत्ता से पंजाब रवाना हो गए, किन्तु उन्हें दिल्ली में रोक लिया गया क्योंकि दिल्ली देश की राजधानी है और इसे बचाना ज्यादा जरूरी है। 
काश! उस समय भारत में एक और गाँधी होता, तो पंजाब तबाह न होता।  और उस तबाही से आज तक लोगों के जेहन में जो नफरत है, वह नफरत भी नहीं होती। 


 ... ... .... ... .... ....  काश! ... 

Comments

  1. let me know in the comment section, what do you think regarding above context?

    ReplyDelete

Post a Comment