अब कहाँ दूसरों के दुःख से दुखी होने वाले
यह दुनिया कैसे बानी, पहले क्या थी कैसे वजूद में आयी , यह विवाद का विषय है। विज्ञान का मत अलग है और धर्मशास्त्रों का मानना अलग है। खैर जैसे भी बानी हो , यह संतुलित थी। पशु,पक्षी,मनुष्य,नदी,पर्वत,समुद्र सभी की बराबर हिस्सेदारी थी। संसार में प्रकृति पहले आयी और मनुष्य बाद में , इसलिए प्रकृति हमारी माँ है। प्रकृति के सभी उपादान (पेड़,पौधे,पशु,पक्षी,),सभी जीवधारियों का बराबर है। लेकिन आदमी ने अपनी बुद्धि के बल पर अपने और प्रकृति के बिच एक दीवार खड़ी कर दी , और सभी जीव जंतुओं पर अपना अधिपत्य स्थापित कर दिया। उनके रहने के स्थान को हड़प कर उन पर राज करने लगे।
लेखक ने अपने पूर्वजों के कृत्य की तुलना वर्त्तमान समय से की है। उनके प्रकृति के बारे में जो सोच थी उसे आज के समाज के सामने रखा है।
पूर्वज
- ईसा पूर्व 1025 - सुलेमान नमक राजा का उल्लेख ( चींटी )
- महान कवि सेख अयाज़ के पिता ( च्योंटा )
- नूह का लक़ब -लशकर (कुत्ते का उल्लेख )
चींटी : इतिहास में १०२५ ईसा पूर्व सुलेमान नमक राजा हुआ करता था। बाइबिल में इसका जिक्र सोलोमन नाम से है। वह सभी जीवों की आवाज सुन सकता था। उसका मानना था की वह सिर्फ मानव जाति का नहीं बल्कि सभी जीवधारियों का राजा है और उनकी रक्षा करना उसका कर्त्तव्य है। एक बार चीटियों का समूह रास्ता पर कर रही था तभी घोड़ो के टापों की आवाज सुनाई पड़ी , उनमे हाहाकार मच गया कि अब वे घोड़ो के पैरो तले रौंदी जाएँगी। सुलेमान अपनी सेना के साथ जा रहा था उसने चीटियों का आवाज सुन ली और पहले चीटियों को पर होने दिया फिर घोड़ा आगे बढ़ाया। वह जनता था कि प्रकृति को संतुलित बनाये रखने में इनका भी योगदान है। चीटियां भोजन के छोटे कणो की सफाई करती हैं।
च्योंटा : सीख अयाज़ फारसी के महान कवी थे। एक बार इनके पिता कुँए ओर स्नान कर के लौटे और भोजन करने के लिए बैठ गए। उन्होंने पहला ही कौर लिया कि उनकी नजर उनके बांह पर रेंग रहे च्योंटे पर गयी। वे भोजन छोड़कर चल दिए। पत्नी ने पुछा ,"क्या खाना अच्छा नहीं बना ?" उन्होंने कहा,"मैंने एक जीव को उसके परिवार से अलग कर दिया है पहले इसे पहुंचा कर आता हूँ फिर भोजन करूँगा। "
कुत्ता : इस्लाम धर्म में कुत्ते को नीची नजर से देखा जाता है , उसे दुत्कारा जाता है। एक बार लश्कर के सामने एक कुत्ता आया,उसके शरीर पर घाव था। लश्कर ने घृणा के साथ उसे दुत्कार दिया। तब कुत्ते ने कहा ," ना मैं अपनी मर्जी से कुत्ता बना हूँ और न तू अपनी मर्जी से आदमी बना है। " यह सुनकर वह अचरज में पड़ गया कि यदि कुत्ता घृणा का पात्र होता तो खुदा उसे बनता ही क्यों। संसार के सभी जीव को परमात्मा ने बनाया है और सभी महत्वपूर्ण है। इसके बाद वह पश्चाताप की अग्नि में जलता रहा। उसने यह बात सभी को बताया और परवरदिगार का पैगम्बर बन गया जिसे बाद में 'नूह का लक़ब ' की उपाधि मिली।
वर्त्तमान समय
- लेखक की माँ के विचार
- लेखक की निजी राय
- लेखक की पत्नी
- दुष्परिणाम
लेखक की माँ बचपन से ही उसे समझती थी कि सूरज ढलने के बाद पेड़ से पत्ते मत तोड़ो ,उन्हें दुःख होता है। फूल मत तोड़ो , उनकी बद्दुआ लगती है। कबूतरों को मत सताओ , वे खुदा के अजीज होते हैं। दरिया पर जा कर उसे सलाम करो। वह प्रकृति के प्रति सचेत थीं और लेखक को भी यही बात समझती थीं। ग्वालियर में उनका माकन था , उसपर मुर्गे और कबूतर को भी रहने की छूट थी। दो कबूतरों ने उनके रोशनदान पर घोसला बनाया था। अंडे थे जिसमे से एक को बिल्ली ने गिरा दिया। माँ दूसरा अंडा सुरक्षित स्थान पर रखने गयी तो उन्ही के हाथ से वह टूट गया। उन्हें काफ़ी दुःख हुआ और पश्चाताप करने के लिए उन्होंने रोजा रखा।
लेखक बड़ा होकर वर्सोवा (बम्बइ में ) जाकर बस गया। उनके अनुसार जहा उनका माकन है , वहाँ पहले घने जंगल थे , नदियां थीं , पशु-पक्षी उन्मुक्त विचरण किया करते थे। लेकिन अब वहाँ मानव बस्तियाँ बन गई हैं ,
सड़कें बन गई हैं। जानवरों कि स्वछंदता समाप्त हो गयी है। अब वे रहने के लिए शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। इनमे से दो कबूतरों ने उनके माकन में भी डेरा दाल लिया।
लेखक के घर कबूतरों के आने जाने से उन्हें बड़ी परेशानी होती थी , वे लाइब्रेरी में घुसकर मिर्जा ग़ालिब और कबीर के साथ खेलने लगते थे। पत्नी ने परेशान होकर खिड़की पर जाली लगा दी और उनके बच्चों को स्थानांतर कर दिया। कबूतरों को इनसे काफ़ी दुःख हुआ , लेकिन उनकी व्यथा सुनने वाला सुलेमान राजा था और ना ही उनके दुःख में रोजा रखने वालो उनकी माँ।
लेखक ने पाया की पहले के ज़माने में लोगो में प्रेम और अपनेपन की भावना थी ,लोग प्रकृति के प्रति संवेदनशील थे। आज भौतिकवाद और उपभोक्तावादी संस्कृति उनपर हावी हो गयी है , वे केवल अपने स्वार्थ को पूरा करते हैं। आज मनुष्य आत्मकेंद्रित हो गया है और उसकी संवेदना मिट गयी है।
आज आदमी प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रहा है और केवल अपने स्वार्थ को पूरा कर रहा है। जो उसके जरूरत की होती है उसका भक्षण करता है और जो काम नहीं आती उसके बर्बाद होने के लिए छोड़ देता है। इसी का दुष्परिणाम आज नित नए-नए रोग , जलजला ,सुनामी ,अतिवृष्टि ,अनावृष्टि ,जलवायु परिवर्तन , ग्लोबल वार्मिंग जैसे संकट ने हमें घेर लिया है।
बड़े बड़े बिल्डर अत्यधिक लाभ लिए समुद्र की जमीं हथिया कर उसपर इमारतें बना रहे हैं। इससे समुद्र सिकुड़ता जा रहा है। कुछ वर्ष पहले बम्बई में समुद्र ने अपनी लहरों पर चल रही तीन जहाजों को बच्चों के गेंद की तरह उछाल कर फेंक दिया था। एक वर्ली , एक बांद्रा और गेटवे ऑफ़ इंडिया के पास गिरा। लाख कोसिस के बाद भी वे चलने-फिरने लायक नहीं बचे और अपने धर्मस्थलों पर रक्षा की दुहाई करने लगे। जब नेचर की सहन सकती समाप्त हो जाती है तो इसी तरह की आपदाओं का सामना करना पड़ता है।
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Are bhai... Kya mast hai!!
ReplyDeleteMtlb hila k rakh diya ekdam.