एक फूल की चाह

 एक फूल की चाह 


महामारी जब भी आती है, तो वह अपने राह में आने वाले हर किसी को अपने चपेट में ले लेती है।  वह किसी से उसका जात,रंग, या रुतबा नहीं पूछती। किसी को जन्म के आधार पर अछूत और नीच घोषित  कर देना, किसी मनुष्य का दूसरे मनुष्य के साथ जानवर से भी बदतर सलूक करना आखिर कहाँ तक उचित है। श्री सियारामशरण गुप्त जी की कविता एक फूल की चाह भी इसी सामाजिक छुआछूत की समस्या पर आधारित है। 






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