पटना का समंदर
समंदर के सफर में
मैं पटना, बिहार में रहता हूँ। बिहार का सम्बन्ध बाढ़ से काफ़ी पुराना है, ऐसा नहीं है की यह एक प्राकृतिक आपदा है तो इसका कोई समाधान नहीं है। हालांकि इसे रोक नहीं सकते पर इसके प्रभाव को कम तो कर सकते हैं। पर यह करे कौन - सरकार ??
जब तक चुनाव में जाति जिंदाबाद है और लोग हेलीकाप्टर से फेंक कर दिए जाने वाले चूरे पैकेट से संतुष्ट हैं, तब तक गंगा मैया बिहार में उफ़ान लेती रहेंगी। ऐसे में यहाँ कोई इंडस्ट्री लगाने की सोच भी कैसे सकता है, मशीनें बाढ़ आते ही पानी पीकर ख़राब हो जाएँगी।
नितीश जी स्मार्ट-सिटी का ख़्वाब तो दिखा रहे हैं, निर्माण कार्य भी हर जगह प्रगति पर है।
जब भी बरसात आती है तो नालियों का पानी समंदर की लहरों की तरह फैलने लगता है। चाहें वह पटना हो या कहीं और। ऐसा ही एक समुंदर का लहर मेरी ओर बढ़ा और मैं उस समंदर के सफर में चल दिया।
समंदर के सफर में मैं चल तो दिया...
अहं! इसे मुंबई जैसा समंदर समझने की भूल न करें,
यह उससे बिलकुल विपरीत है।
यह पटना की उन तमाम गलियों में बना समंदर है,
जहाँ के नालियों की तंदुरुस्ती तारीफ-ए-नाक़ाबिल है।
वहां समंदर बरसात का कारन बनती है,
और यहाँ बरसात ही समंदर की रचना करती है।
दोनों में अन्योन्याश्रय संबंध है।
मुंबई का समंदर उसे महानगर बनता है,
और यही समंदर जब पटना की गलियों में अपना विस्तार करती है,
तब इसके स्मार्ट-सिटी बनने का सपना डूबता सा नज़र आता है।
यह समंदर आपको एक ऐसे गाड़ी मालिक होने का सुःख देती है,
जो जल और थल दोनों पर चलता हो।
मैंने तो ऐसा ही महसूस किया।
बस रास्ते जाने-पहचाने होने चाहिए,
क्या पता कब कोई गड्ढेनुमा पनडुब्बी आपको खींच ले।
बरसात मुसलाधार हो रही है।
वीडियो के साथ इस व्यंग-काव्य का आनंद लें :)
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