रहीम
दोहे रहीम
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय॥
टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय॥
प्रेम का बंधन किसी धागे के समान होता है जिसे कभी भी झटके से तोड़ नहीं देना चाहिए बल्कि उसकी हिफाजत करनी चाहिए। क्योंकि जब कोई धागा एक बार टूट जाता है तो फिर उसे जोड़ा नहीं जा सकता। जोड़ने की कोशिश में उस धागे में गाँठ पड़ जाती है। किसी से रिश्ता जब एक बार टूट जाता है तो फिर उस रिश्ते को दोबारा जोड़ा नहीं जा सकता।
रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहै कोय॥
सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहै कोय॥
मनुष्य को अपनी व्यथा उजागर नहीं करनी चाहिए क्योंकि इससे वह उपहास का पात्र बनता है।
एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय॥
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय॥
मनुष्य को किसी एक काम में प्रवीणता हासिल करनी चाहिए ताकि जीवन की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके।
अथवा
मनुष्य को एक ही देवता को प्रस्सन करना चाहिए मनोवांछित फल पाया जा सके।
चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध-नरेस।
जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस॥
जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस॥
चित्रकूट रमणीक स्थान है जहाँ तप करने के लिए अनुकूल वातावरण रहता है। यहाँ वैराग्य धारण करने वाले परमात्मा को पाने के लिए साधना करते हैं , या फिर विपत्ति का मारा हुआ व्यक्ति आत्मिक शांति का प्रयास करता है।
दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं।
ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमिटि कूदि चढ़ि जाहिं॥
ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमिटि कूदि चढ़ि जाहिं॥
किसी भी दोहे में कम शब्दों में ही बहुत बड़ा अर्थ छिपा होता है।
- नट - बाज़ीगर
- सिमिटि - सिकुड़ कर
- कुंडली - लोहे का गोल घेरा
यह वैसे ही होता है जैसे नट की कुंडली होती है। नट अपनी कुंडली में सिमट कर तरह तरह के विस्मयकारी करतब दिखा देता है।
- कुंडली - शरीर का सुषुप्त चक्र जिसे साधना द्वारा जागृत करना होता है।
धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पियत अघाय।
उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो जाय॥
उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो जाय॥
- धनि - धन्य
- पंक - कीचड़
- लघु - छोटे-छोटे
- जिय - जीव-जंतु
- उदधि - समुद्र
कीचड़ में पाया जाने वाला थोडा सा पानी ही धन्य है क्योंकि उस पानी से कितने छोटे-छोटे जीवों की प्यास बुझती है। सागर का जल विशाल मात्रा में होते हुए भी व्यर्थ होता है क्योंकि उस जल से किसी की प्यास नहीं बुझती।
नाद रीझि तन देत मृग, नर धन देत समेत।
ते रहीम पशु से अधिक, रीझेहु कछू न देत॥
ते रहीम पशु से अधिक, रीझेहु कछू न देत॥
हिरण किसी के संगीत से खुश होकर अपना शरीर न्योछावर कर देता है। इसी तरह से कुछ लोग दूसरे के प्रेम से खुश होकर अपना सब कुछ दे देते हैं।
- रहीम के अनुसार वह मनुष्य पशु से भी गया-गुज़रा होता है जो किसी कलाकार से प्रभावित होने के उपरांत भी उसे कुछ पारितोषिक नहीं देता। वह कलाकार की कला से मन्त्र-मुग्ध तो होता है पर उसका उत्साह वर्धन नहीं करता।
बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय॥
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय॥
रहीम के अनुसार किसी बात के बिगड़ जाने के बाद उसके लिए माथा-पच्ची करना, समय बर्बाद करना व्यर्थ है क्योंकि बिगड़ी बात पुनः सँवारती नहीं। जैसे दूध फटने के बाद उससे माखन की प्राप्ति नही हो पाती।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि॥
ईश्वर की बनाई दुनिया में हर वस्तु का अपना-अपना महत्व होता है। मनुष्य की फितरत है कि वह अक्सर बड़े के चक्कर में छोटे की उपेक्षा कर देता है जो कतई उचित नहीं है।
जैसे जहाँ सुई की जरूरत होती है वहाँ तलवार का कोई काम नहीं होता।
जैसे जहाँ सुई की जरूरत होती है वहाँ तलवार का कोई काम नहीं होता।
रहिमन निज संपति बिन, कौ न बिपति सहाय।
बिनु पानी ज्यों जलज को, नहिं रवि सके बचाय॥
बिनु पानी ज्यों जलज को, नहिं रवि सके बचाय॥
जब आपके पास धन नहीं होता है तो कोई भी विपत्ति में आपकी सहायता नहीं करता।
कमल की संपत्ति जल है। जब तक जल रहता है, तब तक ही कमल खिलता है। कमल का सौंदर्य अद्वित्य होता है लेकिन अपनी संपत्ति के अभाव में सूर्य उसपर रहम नहीं करता बल्कि जला देता है।
कमल की संपत्ति जल है। जब तक जल रहता है, तब तक ही कमल खिलता है। कमल का सौंदर्य अद्वित्य होता है लेकिन अपनी संपत्ति के अभाव में सूर्य उसपर रहम नहीं करता बल्कि जला देता है।
रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून॥
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून॥
प्रस्तुत दोहे में 'पानी' शब्द मनुष्य, मोती और चून के लिए प्रयुक्त हुआ है।
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