कवि रैदास (रविदास) के पद
पाठ : पद
कवि : रैदास (रविदास)
- रैदास भक्तिकाल के कवि हैं।
- वे निराकार ब्रह्म के उपासक हैं, मूर्तिपूजा और तीर्थ में विश्वास नहीं करते हैं।
- उन्होंने वाह्य आडम्बर का प्रबल विरोध किया है।
- उनका दृष्टिकोण मानवतावादी है इसलिए उन्होंने मन की निर्मलता पर बल दिया है। मन निर्मल होने से परमात्मा की प्राप्ति संभव है।
- मन चंगा तो कठौती में गंगा - रैदास।
(1)
अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी।
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी , जाकी अँग-अँग बास समानी।
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा , जैसे चितवत चंद चकोरा।
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती , जाकी जोति बरै दिन राती।
प्रभु जी, तुम मोती हम धागा , जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।
प्रभु जी, तुम तुम स्वामी हम दासा , ऐसी भक्ति करै रैदासा।
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी , जाकी अँग-अँग बास समानी।
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा , जैसे चितवत चंद चकोरा।
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती , जाकी जोति बरै दिन राती।
प्रभु जी, तुम मोती हम धागा , जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।
प्रभु जी, तुम तुम स्वामी हम दासा , ऐसी भक्ति करै रैदासा।
- रैदास ने प्रथम पद में यह सिद्ध किया है कि भगवन और भक्त का सम्बन्ध अटूट है और अनन्य है।
- रैदास हमेशा राम नाम का जाप करते रहते हैं।
- राम - जो सब में रमन करता है।
- जिस तरह चंदन के संपर्क में रहने से पानी में उसकी सुगंध फैल जाती है, उसी प्रकार मेरे तन मन में आपके प्रेम की सुगंध व्याप्त हो गई है।
- आप आकाश में छाए काले बादल के समान हो, मैं जंगल में नाचने वाला मोर हूँ। जैसे बरसात में घुमडते बादलों को देखकर मोर खुशी से नाचता है, उसी भाँति मैं आपके दर्शन् को पा कर खुशी से भावमुग्ध हो जाता हूँ।
- जैसे चकोर पक्षी सदा अपने चंद्रामा की ओर ताकता रहता है उसी भाँति मैं भी सदा आपका प्रेम पाने के लिए तरसता रहता हूँ।
- हे प्रभु ! आप दीपक हो और मैं उस दिए की बाती जो सदा आपके प्रेम में जलता है।
- प्रभु आप मोती के समान उज्ज्वल, पवित्र और सुंदर हो और मैं उसमें पिरोया हुआ धागा हूँ।
- आपका और मेरा मिलन सोने और सुहागे के मिलन के समान पवित्र है। जैसे सुहागे के संपर्क से सोना खरा हो जाता है, उसी तरह मैं आपके संपर्क से शुद्ध हो जाता हूँ।
- हे प्रभु! आप स्वामी हो मैं आपका दास हूँ।
(2)
ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै।
गरीब निवाजु गुसाईआ मेरा माथै छत्रु धरै॥
जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै।
नीचउ ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै॥
नामदेव कबीरू तिलोचनु सधना सैनु तरै।
कहि रविदासु सुनहु रे संतहु हरिजीउ ते सभै सरै॥
• लाल – भगवन
• ग़रीब निवाजु – दीन-दुखियों पर दया करने वाला
• माथै छत्रु धरै – मस्तक पर स्वामी होने का मुकुट धारन करता है
• छोति – छुआछूत
• जगत कौ लागै – संसार के लोगों को लगती है
• हरिजीऊ – हरि जी से
• नामदेव – महाराष्ट्र के एक प्रसिद्ध संत
• तिलोचनु – एक प्रसिद्ध वैष्णव आचार्य जो ज्ञानदेव और नामदेव के गुरु थे।
• सधना – एक उच्च कोटि के संत जो नामदेव के समकालीन माने जाते हैं।
• सैनु – रामानंद का समकालीन संत।
• हरिजीउ - हरि जी से
• सभै सरै - सबकुछ संभव हो जाता है
हे प्रभु ! आप गरीब तथा दिन – दुखियों पर दया करने वाले हैं। आप ही ऐसे कृपालु स्वामी हैं जो मुझ जैसे अछूत और नीच के माथे पर राजाओं जैसा छत्र रख दिया। आपने मुझे राजाओं जैसा सम्मान प्रदान किया। मैं अभागा हूँ। मुझ पर आपकी असीम कृपा है। आप मुझ पर द्रवित हो गए । हे स्वामी आपने मुझ जैसे नीच प्राणी को इतना उच्च सम्मान प्रदान किया। आपकी दया से नामदेव , कबीर जैसे जुलाहे , त्रिलोचन जैसे सामान्य , सधना जैसे कसाई और सैन जैसे नाई संसार से तर गए। उन्हें ज्ञान प्राप्त हो गया। अंतिम पंक्ति में रैदास कहते हैं – हे संतों, सुनो ! हरि जी सब कुछ करने में समर्थ हैं। वे कुछ भी करने में सक्षम हैं।
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Ki tere liye duniya chor di hai.. ki tujh pe hi sans aake ruke.. main tujh ko itna chahta hoon ki tu kabhi soch na sake
ReplyDeleteMuhabbat ka gam hai... Mile jitna kam hai... Ye to jamana nhii jaan payega... Mera jo Sanam hai... Jara beraham hai... Deke mujhe wo dard muskurayega....
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