तोप कविता

कविता : तोप
कवि : वीरेन डंगवाल (1947 )

यह कविता भारत के स्वंत्रता संग्राम पर आधारित है। सन् 1857 में भारत के स्वंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विगुल फूंका परन्तु  गए।  उनके हार कारण बना यह तोप। भारत पर 1857 से पहले ईस्ट इंडिया कंपनी क हुकूमत थी और 1857 के संग्राम के बाद उस पर ब्रिटेन कंपनी की हुकूमत हो गयी। अंग्रेजों ने तोप की भयंकर मारक शक्ति का प्रयोग करके भारतीय वीरों के चिथड़े उड़ा  दिए। तोप राक्षसी शक्ति और अंग्रेजों की बर्बरता एवं दमनकारी शासन का प्रतीक है। 

प्रस्तुत कविता के द्वारा कवी ने बताया है कि :  

  • परिवर्तन समय का शास्वत (जो हर काल और स्थान पर सत्य हो )नियम है। 
  • अमानवीय शक्तियां कुछ समय के लिए मानवीय शक्ति पर प्रबल हो सकती है परन्तु समय बीतने पर वह शक्तिहीन हो जाती हैं और उसका उपहास किया जाता है।  
  • शक्ति मिलने पर उसका प्रयोग राष्ट्रहित और मानव कल्याण के लिए करना चाहिए। 
कविता अर्थ अधोलिखित है :-
कंपनी बाग़ के मुहाने पर 
धर रखी गई  है यह 1857 की तोप 
इसकी होती है बड़ी सम्हाल ,विरासत में मिले 
कंपनी बाग की तरह 
साल में चमकई  जाती है दो बार। 

  • कंपनी बाग़ -  अंग्रजो द्वारा बनाई गयी बाग़ 
  • मुहाने -  द्वार 
  • विरासत- पूर्वजों द्वारा मिली चीजें 
  • तोप स्त्रीलिंग शब्द है 
सन् 1857 में भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ अंग्रेजो द्वारा जो तोप  इस्तेमाल की गयी थी , उसे  कंपनी बाग़ के मुख्य द्वार पर रखा गया है। कंपनी बाग़ को अंग्रेजो (कंपनी सरकार) ने अपने लिए भारत में बनवाया था। 
इस तोप की बहुत सम्हाल की जाती है  क्योंकि यह हमें विरासत में मिली है। इसे साल में दो बार चमकाया जाता है ,साफ़-सफाई की जाती है। वे दो अवसर संभवतः स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस होंगे चूँकि ये राष्ट्रपर्व है और तोप हमारे राष्ट्र को विरासत में मिली है। 
  • विरासत में मिली चीजें हमारे पूर्वजों की स्मृतियों से जुड़ी होती हैं। 
  • ये हमें अपनी सभ्यता-संस्कृति और इतिहास से जोड़े रखती है। 

सुबह-शाम कंपनी बाग़ में आते हैं बहुत से सैलानी 
उन्हें बताती है यह तोप 
कि मैं बड़ी जबर उदा दिए थे मैंने 
अच्छे-अच्छे   सूरमाओं के धज्जे 
अपने ज़माने में 

  • सैलानी - tourist 
  • जबर- शक्तिशाली 
  • सूरमा - वीर 
अब कवि ने मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किया और तोप को एक मनुष्य की तरह अपने बारे में बताते हुए दिखाया है। कंपनी बाग़ में जो टूरिस्ट घूमने  आते हैं , उन्हें यह तोप बताती  है कि अपने ज़माने में यानी 1857 के युद्ध के समय वह बहुत शक्तिशाली थी। उसने अपने  आग के गोलों से बड़े-बड़े भारतीय सूरवीरों के चिथड़े उड़ा दिए थे।  उसके आतंक से लोग सहमे हुए थे। 

अब तो बहरहाल 
छोटे लड़कों की घुड़सवारी से अगर यह फारिग हो तो उसके ऊपर बैठकर 
चिड़ियाँ ही अक्सर करती हैं गपशप 
कभी-कभी शैतानी में वे इसके भीतर  भी घुस जाती हैं 
खास कर  गौरैये 




  • फारिग - खाली 
  • तोप -प्रतीक है - शक्ति का 
  • गौरैया - प्रतीक है - शक्तिहीन का 


    • लेखक कहते हैं कि समय बदलता रहता है , वक्त के साथ तोप की भी शक्ति चूक गयी। अब तोप शक्तिहीन हो गयी। अब उसका आतंक समाप्त  गया। अब तोप मनोरंजन का साधन  बन गया है। छोटे बच्चे अक्सर इसके ऊपर बैठकर घुड़सवारी किया करते हैं। जब तोप खली होता है तब चिड़िया आकर इसके मुँह पर  बैठ कर बाते किया करती हैं। कभी -कभी तो गौरैया जो एक निरीह पक्षी  है , वह उस तोप के मुँह में भी घुस जाती हैं जिसने  अनेक सूरमाओं को मारा था। वह तोप का उपहास करती हैं। 

      वे बताती हैं की दरअसल कितनी भी बड़ी हो तोप 
      एक दिन तो होना ही है उसका मुँह बंद। 

      चिड़िया  तोप का उपहास (मजाक बनाना ) करके ये बताती हैं कि अमानवीय शक्ति कितनी ही प्रबल हो लेकिन अंत में जीत मानवीय शक्ति की ही होती है। समय के साथ राक्षशी शक्तियां कमजोर हो जाती हैं और उपहास का पात्र बनती हैं।  



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